मुसाफिरखाना अमेठी
‘बोली ज़ैनब अपनी खाहर ये उम्मे कुलसूम से, चेहलुम करने भइया का मैं आई हूं’, अंजुमन सिपाहे हुसैनी भनौली के साहबे बयाज़ों ने जब ये अशआर पढ़े तो सोगवार बिलख-बिलख कर रो पड़े। नौहे में जैसे-जैसे दर्द भरे अशआर सुनाए जा रहे थे, वैसे-वैसे अज़ादार अपना सिर पीट-पीटकर रो रहे थे। क्षेत्र के भनौली गांव में बड़े ही गमगीन माहौल में चेहलुम का जुलूस निकाला गया। अज़ादारों ने नम आंखों से मौला इमान हुसैन की ताबूत उठाया।
पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन (अ.स) और कर्बला के 71 शहीदों की याद में गुरुवार को बड़ा इमामबाड़ा भनौली सादात से चेहलुम का जुलूस निकाला गया। इस दौरान दर्द भरे नौहे सुनकर अकीदतमंद अश्कबार थे। वहीं अंजुमन के नौजवानों ने सीनाज़नी कर बीबी फातेमा को उनके लाल का पुरसा दिया। जुलूस बड़े इमामबाड़े से निकलकर, छोटे इमामबाड़े के रास्ते दरगाहे आलिया हज़रत अबुल फज़लिल अब्बास से होते हुए कर्बला पहुंचा। जहां लोगों ने गमगीन माहौल में ताज़िए दफ्न किये। इस दौरान प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद रहा।
क्यों मनाते हैं चेहलुम?
शिया मुस्लिम हजरात के मुताबिक इराक में स्थित कर्बला के मैदान में शहीद हुए पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 अनुयायियों की शहादत की तारीख यानी 10 मोहर्रम के 40वें दिन हर वर्ष चेहलुम मनाया जाता है। इमाम हुसैन मोहर्रम की 10वीं तारीख को शहीद हुए थे। लिहाजा, मुहर्रम के अगले महीने यानी इस्लामी कैलेंडर के सफर के महीने में 20 तारीख को चेहलुम मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर से न सिर्फ शिया समुदाय के लोग, बल्कि हर धर्म के लोग कर्बला पहुंचकर इमाम हुसैन के साथ होने का ऐलान करते हैं। माना जाता है कि कर्बला में एक ही वक्त में, एक जगह पर सबसे ज्यादा लोग इकट्ठा होते हैं। इस बार पूरी दुनिया से 22 मिलियन (2 कोरड़ 20 लाख) लोगों से ऊपर भी लोग चेहलुम मनाने कर्बला पहुंचे थे।